बचपन का बेस्टी यादगार

बचपन का बेस्टी (सर्वश्रेष्ठ दोस्त) एक ऐसा व्यक्ति होता है जिसके साथ आपने अपनी बचपन की सबसे यादगार और अनमोल पल बिताए होते हैं। यह दोस्ती मासूमियत, हंसी, खेलकूद और बेफिक्री से भरी होती है। बेस्टी के साथ किए गए मजेदार शरारतें, गहरे राज, और सपने बांटने वाले पल हमेशा के लिए यादगार बन जाते हैं।

बचपन के बेस्टी के साथ बिताए गए वक्त का एक खास मतलब होता है, क्योंकि ये दोस्ती बिना किसी शर्त या स्वार्थ के होती है।

बेस्टी का मतलब क्या था?

जिगरी दोस्त “बेस्टी” एक अपशब्द है जो “बेस्ट” शब्द से लिया गया है और इसका अनौपचारिक रूप से किसी व्यक्ति के सबसे अच्छे दोस्त को संदर्भित करने के लिए उपयोग किया जाता है। मूल रूप से, “बेस्टी” किसी का सबसे करीबी और सबसे भरोसेमंद दोस्त होता है।

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बचपन की सबसे बड़ी गलतफहमी

बचपन की सबसे बड़ी
गलतफहमी यही थी यारो,
की बड़े होते ही ज़िंदगी बड़ी
मजेदार हो जायेगी !!

bachapan ki sabase badi
galatafahami yahi thi yaaro,
ki bade hote hi zindagi badi
majedaar ho jaayegi !!

बचपन के दोस्त की शायरी

चलो के आज बचपन का कोई खेल खेलें ,
बडी मुद्दत हुई बेवजाह हँसकर नही देखा

चलो के आज बचपन का कोई खेल खेलें ,
बडी मुद्दत हुई बेवजाह हँसकर नही देखा

जिम्मेदारियों ने वक्त से पहले बड़ा कर दिया साहब ,
वरना बचपन हमको भी बहुत पसंद था!

चले आओ कभी टूटी हुई चूड़ी के टुकड़े से ,
वो बचपन की तरह फिर से मोहब्बत नाप लेते हैं!

चलो आज बचपन का कोई खेल खेलें ,
बड़ी मुद्दत हुई बे-वजह हंसकर नहीं देखा!

सुकून की बात मत कर ऐ दोस्त ,
बचपन वाला इतवार अब नहीं आता!

कोई तो रुबरु करवाओ ,
बेखोफ़ हुए बचपन से ,
मेरा फिर से बेवजह मुस्कुराने का मन है!

नींद तो बचपन में आती थी ,
अब तो बस थक कर सो जाते है

बहुत खूबसूरत था महसूस ही नहीं हुआ ,
कब कहां और कैसे चला गया बचपन हमारा!

कितना आसान था बचपन में सुलाना हम को ,
नींद आ जाती थी परियों की कहानी सुन कर!

बचपन में भरी दुपहरी नाप आते थे पूरा गाँव ,
जब से डिग्रियाँ समझ में आई ,
पाँव जलने लगे!

कौन कहे मासूम हमारा बचपन था ,
खेल में भी तो आधा आधा आँगन था!

बड़ी हसरत से इंसाँ बचपने को याद करता है ,
ये फल पक कर दोबारा चाहता है ख़ाम हो जाए!

दुआएँ याद करा दी गई थीं बचपन में सो ,
ज़ख़्म खाते रहे और दुआ दिए गए हम!

इतनी चाहत तो लाखो रुपए पाने की भी नहीं होती ,
जितनी बचपन की तस्वीर देखकर बचपन में जाने की होती है!

दूर मुझसे हो गया बचपन मगर ,
मुझमें बच्चे सा मचलता कौन है!

ना कुछ पाने की आशा ना कुछ खोने का डर ,
बस अपनी ही धुन बस अपने सपनो का घर ,
काश मिल जाए फिर मुझे वो बचपन का पहर!

हंसने की भी वजह ढूँढनी पड़ती है अब ,
शायद मेरा बचपन ,
खत्म होने को है!

काग़ज़ की कश्ती थी पानी का किनारा था ,
खेलने की मस्ती थी ये दिल अवारा था ,
कहाँ आ गए इस समझदारी के दलदल में ,
वो नादान बचपन भी कितना प्यारा था!

बचपन में जहां चाहा हंस लेते थे ,
जहां चाहा रो लेते थे ,
पर अब ,
मुस्कान को तमीज़ चाहिए ,
और आंसूओं को तनहाई!

जिंदगी में कुछ दोस्त बन गये ,
कोई दिल में तो कोई आँखों में बस गये! ,
कुछ दोस्त अहिस्ता से बिछड़ते चले गये ,
पर जो दिल से ना गये वो आप बन गये!

तभी तो याद है हमे हर वक़्त बस बचपन का अंदाज ,
आज भी याद आता है बचपन का वो खिलखिलाना ,
दोस्तों से लड़ना ,
रूठना ,
मनाना!

आओ भीगे बारिश में ,
उस बचपन में खो जाएं ,
क्यों आ गए इस डिग्री की दुनिया में ,
चलो फिर से कागज़ की कश्ती बनाएं!

जीवन में बचपन के दोस्तों का होना धागे में पिरोए ,
असली मोतियों की तरह है ,
जो हमेशा ,
चमकते रहते हैं और जीवन को उज्ज्वल बनाते हैं!

दोस्ती एक ऐसा उपहार है जो सभी चीजों में उचित है ,
यह किसी के दिल से निकलता है और इसमें ,
ऐसी यादें शामिल होती हैं जो कुछ समय के लिए नहीं ,
बल्कि जीवन भर बनी रहती हैं!

मुझे आज भी याद है वो बचपन के दिन ,
वो कड़ी धुप में खेलना ,
एक दूसरे का खाना खाना ,
लेकिन अब वो सभी बातें नहीं हैं मुमकिन!

वो बचपन की अमीरी न जाने कहां खो गई ,
जब पानी में हमारे भी जहाज चलते थे

बचपन भी कमाल का था ,
खेलते खेलते चाहें छत पर सोयें ,
या ज़मीन पर आँख बिस्तर पर ही खुलती थी